आज जब सोचा कि एक नयी ब्लोग एंट्री कि जाये तो देखा कि ब्लॉगर ने ब्लोग कोम्पोसेर में एक नया बटन दिया हैं, हिंदी में लिखने के लिए। तो सोचा क्यो नही ट्राई किया जाया हिंदी में ब्लोग, परंतु जब लिखने बैठे तो सब अंग्रेजी में ही लिखने लगे। और ब्लॉगर ने जब उसे हिंदी में कनवर्ट किया तो लगा कि कुछ तो गड़बड़ हो गयी हैं। जो सोचा वो लिखा दिखायी नही दिया। फिर समझ में आया कि जब हम सोच अंग्रेजी में रहे थे तो ब्लॉगर भी तो अंग्रेजी में ही लिखेगा, बलेही लिपि देवनागरी हो। तो यह हुई थी गड़बड़। फिर कोशिश कि की जब हिंदी में लिखना हैं तो हिंदी में सोचा जाये, पर बड़ी परेशानी हुई लिखने और सोचने में। शुरुआत में कुछ कथनी हुई पर बाद में कुछ कुछ वापस आ गया। और फिर तो दिमाग एकदम हिंदी में ही चलने लगा।
पर इस सब के बाद एक विचार आता हैं अपने मस्तिष्क में की आदत कितनी खराब हो गयी हैं, की हिंदी में भी जब बोलते हैं तो बीच बीच में अंग्रेजी की कितने शब्द आते हैं। थोड़ी (अभी तो बस थोड़ी सी ही) शरम आती हैं की अपनी मात्रा और राष्ट्र भाषा से कितने दूर होते जा रहे हैं हम। और अपने बच्चो को क्या सिखायेंगे? क्या व्हो हिंदी ठीक से पढ़ भी पाएंगे? या लिख पाएंगे? या फिर हिंदी पढने की कोशिश भी करेंगे?
Thursday, April 12, 2007
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